साल 2016 में राजस्थान में उदयपुर के महाराणा भूपाल के सरकारी अस्पताल में पेट से हुई एक बीमार औरत 12 घंटे तक वार्ड की खींचतान में फंसी रही. डाक्टरों की लापरवाही की वजह से समय पर इलाज नहीं हो पाने के चलते आखिरकार उस ने दम तोड़ दिया. जानकारी के मुताबिक, उदयपुर के कोटडा इलाके के पिलका गांव की 35 साला मोहिनी गरासिया 8-9 महीने के पेट से थी. पेट में दर्द उठने पर उसे गांव के ही सामुदायिक अस्पताल में दिखाया गया, जहां इलाज नहीं होने पर जांच के बाद उसे उदयपुर के सब से बड़े सरकारी अस्पताल के जनाना वार्ड में भरती कराया गया. लेकिन डाक्टरों ने मामूली बुखार बताते हुए उसे मामूली बीमारी वाले वार्ड में रैफर कर दिया. मामूली बीमारी वाले वार्ड के डाक्टरों ने भी उस का इलाज किए बिना ही डिलीवरी का केस बताते हुए वापस जनाना वार्ड में भेज दिया, लेकिन वहां भी मामूली जांच के बाद उसे फिर से जनरल वार्ड में भेज दिया गया.

बारबार इधर से उधर वार्ड के चक्कर लगाने के दौरान मोहिनी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई और उस ने वार्ड के बीच बरामदे में ही दम तोड़ दिया. बाद में जब पूरे मामल की जांच की गई, तो मोहिनी के मरने की वजह उस के पेट में पल रहे बच्चे की 12 घंटे पहले हुई मौत से उस के भी बदन में जहर फैलने को बताया गया. बूंदी जिले की नैनवां तहसील के गांव हीरापुरा की रहने वाली मंजू के साथ जो हुआ, उस तरह का दर्द हर दिन राजस्थान के गंवई इलाकों की सैकड़ों औरतों को झेलना पड़ता है. दरअसल, हर राज्य सरकार ने गंवई और कसबाई इलाकों के सरकारी अस्पतालों में जरूरतमंद पेट से हुई औरतों को खून चढ़ाने के लिए ब्लड स्टोरेज यूनिट तो बना दी है और बदोबस्त दुरुस्त रखने के लिए आपरेशन थिएटर भी बना दिए हैं, लेकिन इन को सही तरह से चलाने के मामले में सेहत महकमा फेल नजर आ रहा है.

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