मैं एक ट्रांसजैंडर सैक्स वर्कर हूं. यह मेरी अपनी खुद की कहानी है. 12 जून, 1992 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के एक मिडिल क्लास परिवार में मेरा जन्म हुआ. हमारा बड़ा सा परिवार था. प्यार करने वाली मां और रोब दिखाने वाले पिता. चाचा, ताऊ, बूआ और ढेर सारे भाईबहन.

मैं पैदा हुआ तो सब ने यही समझा कि घर में लड़का पैदा हुआ है. मुझे लड़कों की तरह पाला गया, लड़कों जैसे बाल कटवाए, लड़कों जैसे कपड़े पहनाए, बहनों ने भाई मान कर ही राखियां बांधीं और मां ने बेटा समझ कर हमेशा बेटियों से ज्यादा प्यार दिया.

हमारे घरों में ऐसा ही होता है. बेटा आंखों का तारा होता है और बेटी आंख की किरकिरी.

सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि कुछ भी ठीक नहीं रहा. मैं जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, वैसेवैसे मेरे भीतर एक दूसरी दुनिया जन्म ले रही थी.

घर में ढेर सारी बहनें थीं. बहनें सजतींसंवरतीं, लड़कियों वाले काम करतीं तो मैं भी उन की नकल करता. चुपके से बहन की लिपस्टिक लगाता, उस का दुपट्टा ओढ़ कर नाचता.

मेरा मन करता कि मैं भी उन की ही तरह सजूं, उन की ही तरह दिखूं, उन की तरह रहूं. लेकिन हर बार एक मजबूत थप्पड़ मेरी ओर बढ़ता.

छोटा था तो बचपना समझ कर माफ कर दिया जाता. थोड़ा बड़ा हुआ तो कभी थप्पड़ पड़ जाता तो कभी बहनें मार खाने से बचा लेतीं. बहनें सब के सामने बचातीं और अकेले में समझातीं कि मैं लड़का हूं. मुझे लड़कों के बीच रहना चाहिए, घर से बाहर जा कर उन के साथ खेलना चाहिए.

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