धर्म अब एक संस्थागत व्यापार हो गया है. देश में बनने वाले मंदिरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. एक समय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शिरडी के साईंबाबा के मंदिर बनाए जाने पर आपत्ति जताई थी कि वे भगवान नहीं, बाबा हैं. इसलिए हिंदू धर्म के अनुसार एक मुसलिम बाबा का मंदिर बनाना सर्वथा गलत है. इस पर देशभर में बवाल खड़ा हो गया. साईंबाबा के समर्थकों ने उन्हें भलाबुरा भी कहा. पर वे डटे रहे. साईंबाबा फकीर थे और फकीर की तरह रहे पर अब उन के स्वर्णमय मंदिर बन रहे हैं.

एक और देवता इन दिनों हावी हैं, शनिदेव, जहां देखें वहां शनि मंदिरों का निर्माण हो रहा है. बड़ी भीड़ है. शनिग्रह से सभी भयग्रस्त हैं. मध्य प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने उन पर 111 घड़े सरसों का तेल चढ़ाया था, पर कुरसी छिन गई. इन मंदिरों पर चढ़ावे के अतिरिक्त जो तेल चढ़ता है,  वह आय का बड़ा साधन है. चढ़ाए गए तेल को साफ कर के फिर दुकानों पर बेच दिया जाता है और वही तेल फिर शनिदेव पर शीशियों में भर कर भक्तों को बेच दिया जाता है. यही नहीं, ठेले पर बिकने वाले कई चाटसमोसे उसी तेल से तले जाते हैं. यह रिसाइक्लिंग औयल भारत में ही संभव है.

मंदिरों का बोलबाला

धर्म लालच और भय 2 खंभों पर टिका होता है. शनि की दशा से सभी भयभीत हैं. मजे की बात यह है कि युगों से स्थापित देवता राम और कृष्ण के मंदिर अब सूने पड़े हैं. हां, पुराने भक्त वहां भी हैं, पर साईंबाबा और शनिदेव के मंदिर भक्तों से बहुत ही गुलजार हैं.

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