भारत में एक ओर उच्चशिक्षा के स्तर को ले कर सवाल उठते रहे हैं तो दूसरी ओर पढ़ने के लिए छात्र बड़ी संख्या में विदेशों का रुख कर रहे हैं. भारतीय छात्रों के माध्यम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अरबों डौलर मिल रहे हैं. इस का बुरा प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.

प्रतिभा किसी एक ही देश की परिरक्षित निधि नहीं है. प्रत्येक देश के अपनेअपने क्षेत्र के प्रवीण व्यक्ति होते हैं, जैसे वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, साहित्य या कलाओं के विद्वान, चित्रकार, कलाकार आदि. असाधारण प्रतिभा संपन्न ऐसे पुरुष और स्त्रियां अपने देश की  प्रगति व समृद्धि में योगदान तो देते ही हैं साथ ही, अपनी विशिष्टता वाले क्षेत्र में भी उत्कर्षता लाते हैं.

यह कोई असामान्य बात नहीं है कि इन योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में संतोषजनक काम नहीं मिल पाता या किसी न किसी कारण वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पाते. ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए या अधिक भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं.

उच्चशिक्षा पर सवाल

अपने कुशल और प्रतिभासंपन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सब से अधिक प्रभावित हुए हैं. इस का मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में वेतन और अन्य सुविधाओं के रूप में प्राप्त होने वाले लाभ कम हैं. इन में भारत भी एक है.

भारत में उच्चशिक्षा के स्तर को ले कर हमेशा ही सवाल उठते रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग में भारतीय विश्वविद्यालय पहले 100 संस्थानों में अपनी जगह क्यों नहीं बना पाते हैं? शीर्ष भारतीय संस्थानों में कोई मौलिक शोधकार्य क्यों नहीं होता है? दाखिले में आरक्षण का मुद्दा, ऊंचे अंक हासिल करने के बावजूद दाखिले से वंचित रह जाना, शिक्षक और छात्रों का बिगड़ा हुआ अनुपात, प्रोफैसरों और कुलपतियों की राजनीतिक नियुक्तियां और किस तरह से उच्चशिक्षा के संस्थान अकादमिक भ्रष्टाचार और औसत दरजे के डिगरीधारकों के उत्पादन की फैक्टरियां बन गए हैं. इन सवालों में एक बड़ा सवाल अब यह भी जुड़ गया है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र विदेशों का रुख क्यों कर रहे हैं? इतना ही नहीं, इन छात्रों के साथ फीस और पढ़ाई का पैसा भी बह कर विदेशों में जा रहा है.

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