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मध्य प्रदेश में संविदा नियुक्ति नियम 2017 के वजूद में आते ही उन हजारोंलाखों लोगों की बांछें खिल गईं जो भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं. इस नियम के तहत सरकार जिसे चाहे संविदा पर सरकारी नौकरी दे सकती है. नियम को बनाने और लागू करने में सरकार ने गजब की फुरती दिखाई और महज एक महीने के गहन चिंतन के बाद ही इसे अमलीजामा पहना दिया.

यह पहला मौका होगा जब गैर सरकारी लोग बगैर किसी प्रवेशपरीक्षा या योग्यता के सरकारी नौकरी के पात्र होंगे.  इस अनूठे नियम में हैरानी की एक बात यह भी है कि इस में शैक्षणिक योग्यता का जिक्र  नहीं है  यानी इकलौती योग्यता किसी मंत्री का मुंहलगा होना होगा. ऐसी और भी कई विसंगतियां इस नियम में हैं जो सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाती हैं. नए नियम का मसौदा इतनी चतुराई से बनाया गया है कि सरकार जिसे चाहे, सरकारी नौकरी दे कर उपकृत कर सकती है.

यह है नियम

सरकार ने पूरी कोशिश की है कि संविदा नियुक्ति नियम देखने में आसान न लगें, पर बारीकी से इसे देखें तो साफ नजर आता है कि इस नियम की आड़ में कानूनीतौर पर मनमानी करने को मंजूरी दे दी गई है.

अभी तक राज्य में संविदा नियुक्ति का कोई नियम नहीं था. हालांकि, सामान्य प्रशासन विभाग ने साल 2011 में कुछ दिशानिर्देश जारी किए थे पर वे इतने अस्पष्ट थे कि हर एक सरकारी विभाग ने अपनी सहूलियतों व जरूरतों के मुताबिक भरती नियम बना लिए थे, जिस का खमियाजा सरकार अभी तक भुगत रही है. ये संविदा कर्मचारी कभी भी नियमतीकरण के अलावा अन्य मांगों को ले कर सड़कों पर हड़ताल, धरनाप्रदर्शन व हंगामा करते नजर आते हैं जिस से कामकाज ठप ही होता है.

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