राजस्थान के चूरू जिले में एक अनूठा गांव है, जहां एक भी मंदिर नहीं है. इस गांव के लोग किसी धार्मिक कर्मकांड में विश्वास ही नहीं करते हैं. हैरत की बात तो यह है कि यहां मरने वालों की अस्थियों को बहते पानी में बहाया नहीं जाता है.

यह है चूरू जिले की तारानगर तहसील का गांव ‘लांबा की ढाणी’. यहां के लोग सिर्फ काम करने में यकीन करते हैं. इसी के दम पर आज यहां के लोग पढ़ाईलिखाई, चिकित्सा व कारोबार के क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर अपने गांव को देशभर में नई पहचान दे रहे हैं.

सब से बड़ी बात तो यह है कि तकरीबन 105 घरों की आबादी वाले इस गांव में तकरीबन 100 घर जाटों के हैं, 5 घर नायकों के और तकरीबन 10 घर मेघवाल समाज के हैं.

यहां के लोगों ने नैशनल लैवल पर भी अपनी पहचान बनाई है. गांव लांबा की ढाणी से तकरीबन 25-30 नौजवान सेना में, इतने ही पुलिस में, 20 के आसपास रेलवे में और तकरीबन 25 से ज्यादा लोग चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर नाम कमा रहे हैं. इस ढाणी के 5 नौजवानों ने खेलों में नैशनल लैवल पर पदक हासिल किए हैं, वहीं 2 नौजवान खेल कोच भी हैं.

आप को जान कर सुखद हैरानी होगी कि गांव के 2 लोग इंटैलीजैंस ब्यूरो में अफसर हैं वहीं तकरीबन 2 प्रोफैसर, 7 वकील और 35 अध्यापक हैं.

गांव के रहने वाले 80 साल के वकील बीरबल सिंह लांबा ने बताया कि गांव में तकरीबन 65 साल पहले यहां के रहने वालों ने सामूहिक रूप से तय किया कि गांव में किसी की मौत पर उस का दाह संस्कार तो किया जाएगा, लेकिन अस्थियों को नदी में बहाया नहीं जाएगा. यहां दाह संस्कार के बाद बची हुई अस्थियों को गांव वाले फिर से जला कर राख में बदल देते हैं.

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