60 साल के सरजूदास कभी नौटंकी के मुख्य कलाकार थे. वे बड़े और लंबे किरदार अदा किया करते थे. उन्हें देखने के लिए दूरदूर से लोग खिंचे चले आते थे. आज वे पटना की सड़कों पर रिकशा चला कर अपना और परिवार का पेट भरने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं.

नौटंकी के बारे में पूछने पर वे कुछ देर के लिए चुप्पी साध लेते हैं और फिर कहते हैं, ‘‘नौटंकी के जनून पर पेट की आग भारी पड़ी. कब तक नौटंकी कर के अपने मन को आनंद पहुंचाता, इस के चक्कर में घर का सुकून खत्म हो गया था. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और न जाने किनकिन राज्यों में सैकड़ों प्रोग्राम किए पर पेट की आग बुझाने और परिवार को पालने के लिए कोई काम तो करना ही था.

नौटंकी करने के अलावा कुछ और तो आता नहीं था. कई जगह काम ढूंढ़ा पर कोई काम देने को राजी नहीं हुआ. एक दोस्त की मदद से रिकशा मिल गया. बस, उसे ही चला कर पिछले 22 सालों से गुजारा चल रहा है. नौटंकी मन के किसी कोने में दफन हो गई.’’

दूसरे नौटंकीबाज मिले 47 साल के भीखू साह. ये बिहार के दरभंगा जिले के रहिका गांव के रहने वाले हैं. मेलों और त्योहारों के मौके पर नौटंकी करने वाले भीखू ने करीब 8 सालों तक जगहजगह घूम कर नौटंकी की और खूब तालियां बटोरीं. भीखू के अनुसार, वे लैला का रोल करने के लिए मशहूर थे.

यादों के दरीचे से धूल हटाते हुए वे कहते हैं, ‘‘जिंदा रहने के लिए कुछ कमाई जरूरी थी. तालियों और तारीफों से पेट तो भरता नहीं है. मजबूरी में नौटंकी को छोड़ना पड़ा और पैसों के लिए ढाबा चलाना शुरू किया. ढाबा चलाने के काम में मानइज्जत तो नहीं है पर दोजून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है. 4 लोगों का परिवार का खर्च निकल आता है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...