राजस्थान में पिछले दिनों औरतों को ले कर एक नए तरह का खौफ समाज को जकड़े रहा. इस डर से घबराई औरतों ने तथाकथित तौर पर खुद ही अपने बाल काटने शुरू कर दिए, बाजुओं पर लहसुन की गांठें बांध लीं, घर के बाहर दरवाजे के दोनों ओर गोबर, सिंदूर और रोली के हाथ बनाए गए. हालात ये रहे कि गांव में अगर कोई भीख मांगने वाला भी आ जाता, तो कुहराम मच जाता. छोटे लैवल के साधुबाबाओं की तो जैसे शामत ही आ गई. भगवा धारण किए हर किसी शख्स को शक की निगाह से देखा जाने लगा. यहां तक कि उन को दान में अनाज, रोटी और पुराने कपड़े भी देने से परहेज किया गया. बच्चियों को स्कूल जाने से रोका जाने लगा.

खौफ इतना बढ़ गया कि शाम को औरतों का अकेले घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया. आदिवासी जिले बांसवाड़ा से शुरू हुई इस अफवाह ने देखते ही देखते अजमेर, चित्तौड़गढ़, सीकर, नागौर, चुरू, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर के बाद जयपुर समेत बड़े शहरों के साथ तकरीबन पूरे प्रदेश में अपनी जड़ें जमा लीं.

मानसिक तनाव का आलम यह रहा कि औरतें खुद अपने बाल काटने के बाद बेहोश हो जातीं और जब होश में आतीं, तब तक उन की याददाश्त से यह सब गायब हो जाता.

सोशल मीडिया के साथसाथ प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने इस अफवाह को बढ़ाने में आग में घी का काम किया. सोशल साइटों के तमाम जरीयों से लोग इस अफवाह के शिकार होते देखे गए. कई जगह पढ़ेलिखे लोग भी इस तरह की अफवाह को आगे बढ़ाते रहे.

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