संकट मोचन हनुमान महायज्ञ, विश्वशांति गायत्री महायज्ञ, विश्व शांति वैदिक महायज्ञ. इस तरह के और भी न जाने कितने यज्ञ और महायज्ञ गांवों और शहरों में आयोजित होने लगे हैं जिन का नाम याद रखना भी संभव नहीं है.
मई का महीना शुरू होते ही ऐसे यज्ञों और महायज्ञों के आयोजन की कवायद शुरू हो जाती है और यह कार्यक्रम जुलाई तक चलता रहता है. बिलकुल कदमकदम की दूरी पर विभिन्न संतमहंतों द्वारा अलगअलग तरह के यज्ञ आयोजित किए जाते हैं.
खैर, आइए, अब आप को गांवों में ले चलते हैं जहां आप को इन यज्ञों का दूसरा पक्ष देखने को मिलेगा. सभी यज्ञ अगलबगल के गांवों में चंदा इकट््ठा कर आयोजित किए जाते हैं. चंदे के रूप में रुपएपैसे या अन्न के रूप में कुछ भी लिया जा सकता है. जिस के पास जो भी हो यज्ञ में अवश्य दान करना होगा.
हरेक गांव से कई बोरे अनाज और कितने सारे रुपए यज्ञ के नाम पर वसूले जाते हैं. वसूली का दूसरा आलम यह है कि अभी एक यज्ञ की समाप्ति (पूर्णाहुति) भी नहीं हुई कि दूसरे यज्ञ वाले चंदा मांगने आ जाते हैं. एकत्रित कर के चंदे की इस रकम का आखिर क्या होता है? इस तरह के आयोजनों के लिए चंदा लगा कर लाखों रुपए जमा किए जाते हैं. फिर उन पैसों को तरहतरह से खर्च किया जाता है. भीड़ के रुकने के लिए जगह आदि की व्यवस्था, इस के साथ जगहजगह पर माइक, पोस्टर आदि के माध्यम से यज्ञ के लाभ और यज्ञ कराने वाले बाबा का यशोगान होता है. साथ ही यज्ञ के दौरान जुटने वाले साधुसंतों का आतिथ्य सत्कार भी उचित चढ़ावे के साथ किया जाता है.