मन एक अबूझी पहेली सा तो होता है, उस पर दिल कहीं अटक जाए, तो स्थिति बड़ी विकट हो जाती है और तब शुरू होता है ऊहापोह का दौर. मन की भटकन विवेक को खत्म कर देती है और बौराया सा मन किसी का भी दीवाना हो जाता है. बात यदि कम उम्र की हो तब तो सब स्वाभाविक ही होगा, क्योंकि युवावस्था की देहरी पर विपरीत सैक्स का आकर्षण स्वाभाविक ही होता है. पर यहां मुद्दे का विषय है बड़ी आयु में प्रेम हो जाने का और वह भी तब, जब घर में बेटाबहू और पति हैं, बेशक वे अलग घर में रहते हों, पर ऐसी मानसिकता का क्या किया जाए.

रागिनी की बात करें तो उस के जीवन में सबकुछ था, स्मार्ट पति और प्यार करने वाले बेटाबहू भी, पर फिर भी न जाने क्यों रागिनी बुझीबुझी सी रहती थी. बेटाबहू अलग घर में रहते थे और पति की बेहद व्यस्त दिनचर्या थी. ऐसे में रागिनी को लगता कि वह बेहद अकेली सी हो गई है. उस का पति संजय अपने में ही उलझा रहता. जीवन में तब कुछ उथलपुथल हुई जब संजय के मित्र अंशुल का घर आनाजाना हुआ. रागिनी की जो मानसिक भूख कभी मिटी नहीं थी, उसे अंशुल ने नजरों से सहला दिया था. उस का रागिनी के प्रति एक अलग ही नजरिया था. बेशक वह ग्रेसफुली प्रशंसा करता, पर वह रागिनी के दिल में समा गया था और रागिनी उस का इंतजार करती. रागिनी के मन के किसी कोने में प्रेम का अलाव जल उठा था पर संजय गहराई समझ न पाया लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसे लगा कि कहीं कुछ तो है. वह एक समझदार पुरुष था, उस ने स्वयं ही गहराई से सोचा, तो उसे लगा कि वह रागिनी की उपेक्षा कर रहा है. उस ने सारी स्थिति अपने विवेक से संभाल ली और फिर सबकुछ ठीक हो गया. संजय ने अपने चातुर्य से सब ठीक कर दिया और बात आगे बढ़ी नहीं.

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