कुल मिलाकर लड़कियों को उनकी फिगर और बॉडी से ही आंका जाता है और अगर लड़की की फिगर में कोई उन्नीस इक्कीस हुआ, तो उन्हें मर्दमार औरतों का तमगा दे दिया जाता है, कहा जाता है उन में औरतों वाली बात नहीं है, यही कारण है कि भारतीय समाज में अधिकांश महिलाओं को बॉडी बिल्डिंग और कसरत से दूर रखा जाता है और उन को इस क्षेत्र के नाकाबिल समझते हुए कहा जाता है  ‘ये तुम्हारे बस की बात नहीं’ और साथ ही यह भी माना जाता है कि अगर महिलाएं पुरुषों जैसी कसरत करेंगी तो उनके डोले शोले बन जाएंगे, उनके मसल्स दिखने लगेंगे और उन का लड़कियों वाला लुक खत्म हो जाएगा.

बॉडी बिल्डिंग और मातृत्व से जुड़े मिथक
महिलाएं बौडी बिल्डिंग करती हैं तो उस से उन के मां बनने के प्राकृतिक गुण पर प्रभाव पड़ता है? इस सवाल पर पुणे की फिगर ऐथलीट दीपिका चौधरी जिन्होंने अप्रैल, 2015 में अमेरिका में आयोजित इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट प्रतियोगिता में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया था, बल्कि उस प्रतियोगिता में जीत भी हासिल की थी, का कहना है, ‘‘यह बिलकुल गलत है. इस का ताजा उदाहरण हैं बैंगलुरु की बौडी बिल्डर सोनाली स्वामी जो 2 बच्चों की मां हैं और प्रसिद्ध बौडी बिल्डर भी. फिटनैस या बौडी बिल्डिंग का मातृत्व से कोई लेनादेना नहीं है.’’ अपनी सुंदरता और सिक्स पैक को मैंटेन रखते हुए दीपिका अपने परिवार की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं. वे कहती हैं कि उन्हें अपने फिगर ऐथलीट बनने के निर्णय पर गर्व होता है.

फिगर एथलीट दीपिका चौधरी का मानना है कि जैसे प्रकृति के अनेक रंग हैं वैसे ही हर पुरुष में भी कुछ फैमिनिटी व हर महिला में कुछ मस्क्यूलैरिटी होती है. जो पुरुष फैशन व ब्यूटी इंडस्ट्री से जुड़े होते हैं उन में फैमिनिटी दिखाई देती है. मुझे समझ नहीं आता अगर कोई उस खास स्टाइल, उस बौडी टाइप में कंफर्टेबल है तो समाज को क्यों आपत्ति होती है? हमारे आसपास के लोगों में कोई गोरा, कोई सांवला,कोई लंबा, कोई छोटा, कोई मोटा तो कोई पतला होता है और लोग उन्हें उसी रूप में स्वीकारते हैं. वैसे भी हरेक की अपनी पसंद होती है. हरेक को अपनी पसंद के अनुसार जीने का अधिकार होना चाहिए.

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