अपने किसी जानपहचान वाले या सगेसंबंधी के यहां छुट्टियां मनाने जाना एक सुखद अनुभव है. भागदौड़ भरी जिंदगी में वहां कई ऐसे पल मिल जाते हैं, जब हमें चैन की सांसें मिलती हैं. आबोहवा बदलने से बहुत सी परेशानियां तो अपनेआप ही चली जाती हैं. चाहे कोई भी उम्र हो, सब के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है. हम खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.

आसान शब्दों में कहें तो हमारा तनमन आने वाले समय के लिए रीचार्ज हो जाता है, इसलिए हमारा भी यह फर्ज है कि जिन लोगों के चलते हम को इतना सब मिला, उन के लिए हम भी थोड़ा सोचें.

चलिए, जिक्र करते हैं उन बातों की, जिन का हमें मेहमान बनते वक्त हमेशा खयाल रखना चाहिए:

* अगर हमारा कार्यक्रम लंबा है यानी 15-20 दिन या महीनेभर का है, तो कोशिश की जानी चाहिए कि उसी शहर में जाएं, जहां एक से ज्यादा रिश्तेदार हों. 2-2, 3-3 दिन तक बारीबारी से सब के यहां रुकते रहने से किसी पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा और सभी से मुलाकात भी हो जाएगी.

* छुट्टियों में किसी खास के पास जाने की आदत नहीं बनानी चाहिए. इस से उस के मन में आप के लिए नयापन लगातार कम होता जाता है, भले ही वह आप का मायका या पुश्तैनी घर ही क्यों न हो. समय के साथ लोगों की पसंद और प्राथमिकताएं लगातार बदलती हैं.

* बहुत से लोगों की आदत होती है कि किसी के भी घर पहुंच जाते हैं. लोग भले ही ऊपर से कुछ न कहें, लेकिन आज की गलाकाट प्रतियोगिता के जमाने में हर कोई इतना फ्री नहीं होता कि उस को बारबार किसी की खातिरदारी करने में दिलचस्पी हो, वह भी दूर के जानपहचान वालों की. खुद को किसी के सिर पर थोपने की लत अपनी इज्जत के लिए भी खतरा है.

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