कहते हैं कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए. चाहे सुख हो या दुख, शादीब्याह हो या जन्मदिन की दावत, शराब पीने वालों को पीने का बहाना मिल ही जाता है.

आजकल तो यह अकसर ही देखने को मिलता है कि होलीदीवाली जैसे तीजत्योहारों या दूसरी तरह के उत्सवों में कुछ लोग शराब पी कर नशे में धुत्त हो जाते हैं.

यहां आदतन शराब पीने वालों की चर्चा नहीं की जा रही है, बल्कि उन नौसिखियों या बहानेबाजों की बात हो रही है जो हर तरह के मौकों को शराब से जोड़ देते हैं.

हमारे समाज में आजकल किसी न किसी बहाने शराब पीनेपिलाने का चलन जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, वह ठीक नहीं है.

पुराने समय से है चलन

हमारे समाज में एक दंतकथा सुनीसुनाई जाती है कि शराब (मदिरा) समुद्र मंथन से देवों और असुरों द्वारा निकाली गई थी और उस समय इस का नाम ‘सुरा’ रखा गया था. तब से लोग इस का सेवन करते आ रहे हैं.

कुछ प्राचीन ग्रंथों में देवों द्वारा ‘सोम’ नामक नशीले पेय का सेवन करने और असुरों द्वारा ‘सुरा’ का सेवन किए जाने की बात लिखी हुई है यानी शराब दोनों वर्गों में अलगअलग नाम से पसंदीदा रही है.

सचाई क्या है, यह अलग बात है, पर इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि ‘सुरा’ या ‘सोम’ के नाम से शराब का सेवन पुराने समय में भी होता था, लेकिन उस समय भी इस का सेवन अच्छा नहीं माना जाता था. प्राचीन ग्रंथों में इन के सेवन से बचने की बातों के जिक्र से इस बात की तसदीक होती है.

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