16वीं शताब्दी में यूरोप में लिनेन के बने कंडोम का इस्तेमाल शुरू हुआ. धीरे-धीरे दो शताब्दियां बीतते-बीतते कंडोम जानवरों की खाल से बनाए जाने लगे. पर उस तरह के कंडोम न तो पूरी तरह फिट रहते होंगे और न ही आधुनिक कंडोम्स की तरह सुविधाजनक.

फिर भी पुरुष और कभी-कभी महिलाएं कंडोम को जोश और मूड औफ करनेवाला मानते हैं. सेक्सोलौजिस्ट व काउंसलर डा. हितेन शाह कहते हैं कि यह एक मिथक है. ‘‘यदि आप अपनी सेक्शुएलिटी के लिए आत्मविश्वास से भरे हैं तो कोई भी चीt मूड को समाप्त नहीं कर सकती.’’

आजकल बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले कई तरह के कंडोम उपलब्ध हैं, बहुत ही मुलायम से लेकर वाइब्रेटिंग तक, जो अपनी उपस्थिति का पूरा एहसास कराते हैं. अलग-अलग आकार और नाप के कंडोम भी उपलब्ध हैं. पहले अवरोध की तरह समझे जानेवाले कंडोम्स को अब यौनसुख को बढ़ाने का माध्यम समझा जाने लगा है. डा. शाह कहते हैं,‘‘इतने तरह-तरह के कंडोम्स में से अपने लिए उपयुक्त कंडोम की तलाश भी खुद में एक खूबसूरत अनुभव हो सकता है.’’

सही आकार का कंडोम न चुनने और उसे सही तरीके से न पहनने की वजह से ही अक्सर कंडोम मजा खराब करनेवाला बन जाता है. हर पुरुष को संवेदनशीलता और आकार के अनुसार अलग तरह के कंडोम की आवश्यकता होती है, जैसे-रिब्ड कंडोम कुछ दंपतियों को आनंददायक लगते हैं तो कुछ को अपनी त्वचा पर चुभते हुए. महत्वपूर्ण ये है कि आप अलग-अलग तरह के कंडोम्स का इस्तेमाल कर अपने और अपने साथी के लिए उपयुक्त कंडोम चुनें.

पर सच तो ये है कि कंडोम जोश और उत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं. इनकी वजह से आप चिंतामुक्त रहते हैं और इसका ल्युब्रिकेंट (चिकनाई) सेक्स के अनुभव को सहज बनाता है. वहीं डा. शाह कहते हैं,‘‘कंडोम पहनने में जो वक्त लगता है, यकीनन वो आपके फोरप्ले का समय और साथ ही आनंद को भी बढ़ाता है.’’

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