महात्मा गांधी के कहे मुताबिक आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए. हर गांव में प्रजातंत्र होना चाहिए. मतलब पंचायत का राज. लेकिन इस राज की अहमियत तभी होगी, जब पंचायतों के पास पूरी सत्ता व ताकत होगी. वे अपने पैरों पर तभी खड़ी हो सकेंगी. इस के लिए उन्हें सरकार से माली मदद मिलती है. लेकिन जब ग्राम पंचायतों तक फंड ही नहीं पहुंचता है, तो क्या वे अपने बूते गांव के विकास के लिए कोई भी ठोस काम नहीं कर पाती हैं? क्या सरकारी योजनाओं के बिना भी या अपने सीमित साधनों से ग्राम पंचायतें गांव वालों की जिंदगी चमका सकती हैं? इस का जवाब है कि ऐसा हो सकता है. इस के लिए हम आप को ले चलते हैं हरियाणा के एक छोटे से गांव रत्ताखेड़ा में.

हरियाणा में पानीपतजींद रोड पर एक तहसील आती है सफीदों, जो अनाज मंडी के चलते पूरे हरियाणा में मशहूर है. यहां से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर बसा गांव रत्ताखेड़ा बहुत छोटा सा गांव है. इस में तकरीबन 6 सौ घर हैं, जिन में से ज्यादातर पक्के हैं. कुछ ब्राह्मणों और जाटों के घर तो शहरों जैसी कोठियों को भी मात देते नजर आते हैं.

गांव में घुसते ही एक बड़ा सा मंदिर दिखाई देता है, जो गांव वालों ने चंदा इकट्ठा कर के बनवाया है. यह मंदिर इस गांव को भव्यता देता है, लेकिन मंदिर के ठीक पीछे एक तालाब है... कहने को तालाब है, पर है गंदे बदबूदार पानी का जलभराव, जिस के 3 ओर बने लोगों के घरों ने इस के आकार को और छोटा कर दिया है.

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