कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी किसी जल्दबाजी में नहीं है. संगठन में कोई बदलाव करने से पहले वह उसके नफा-नुकसान का पूरा गणित लगाते हैं. वह जानते हैं कि मौजूदा राजनीतिक स्थितियों का मुकाबला करने के लिए युवा जोश के साथ तजुर्बे की भी जरूरत होगी. इसलिए, वह वरिष्ठ नेताओं के अनुभवों का भी पूरा लाभ लेने की रणनीति पर अमल कर रहे हैं.

वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को पार्टी कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना इसी रणनीति का हिस्सा है. वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत अहम है. ऐसे में पार्टी अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. वह जानते हैं कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के लिए वरिष्ठ नेताओं के अनुभव की जरुरत होगी. इसके साथ चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के खजाने में भी इजाफा करना होगा. इसलिए, राहुल गांधी युवा और तजुर्बेकार नेताओं में संतुलन बनाकर आगे बढ़ रहे हैं.

राहुल गांधी ने अपनी टीम में जहां राजीव सातव, गौरव गोगई, सुष्मिता देव और भंवर जितेंद्र सिंह को जगह दी है, वहीं उन्होंने पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा को भी साथ रखा है. पार्टी महाधिवेशन में अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी खुद कह चुके हैं कि युवा कांग्रेस को आगे ले जाएंगे, पर यह काम वरिष्ठ नेताओं के बिना नहीं हो सकता.

दरअसल, राज्यसभा के चुनाव में अहमद पटेल ने बेहद मुश्किल मुकाबले में जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया था कि नई पीढ़ी के नेताओं को अभी बहुत कुछ सीखना है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी टीम में जिम्मेदारियां भी बहुत सोच-समझ कर दी हैं. वहीं, गुजरात, गोवा, झारखंड और बिहार का प्रभार युवा नेताओं को दिया है. इससे साफ है कि राहुल गांधी युवाओं को जगह देने के लिए जल्दबाजी में निर्णय करने के बजाए गुणा-गणित कर फैसले कर रहे हैं.

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