येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा देने की अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से विश्व राजनीति में तूफान आ गया है. यह अमेरिका की कूटनीतिक रणनीति के बदलाव का संकेत है और अमेरिका दुनिया का पहला देश बना जो आधिकारिक रूप से येरूशलम को इसराईल की राजधानी के रूप में मान्यता दे रहा है.

इतिहास में येरूशलम को यहूदियों की राजधानी होने के प्रमाण उपलब्ध हैं. ट्रंप ने अमेरिका के दूतावास को तेलअवीव से येरूशलम में शिफ्ट करने की भी घोषणा तो कर दी है लेकिन, यह इतना भी आसान काम नहीं है. अमेरिका की विदेश नीति का यह बदलाव मिडिल ईस्ट (खाड़ी देशों) के शक्ति संतुलन को बिगाड़ कर हिंसा भड़काने का कारण बन सकता है. अरब देश इस फैसले का उग्र विरोध कर रहे हैं.

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि येरूशलम को इसराईल और फिलिस्तीन दोनों ही अत्यंत पवित्र मानते हैं. येरूशलम की भूमि को 3 धर्मों ईसाई, यहूदी व इसलाम में पवित्र माना गया है. इसराईल और फिलिस्तीन में लंबे समय से यह संघर्ष का कारण बना हुआ है. दोनों ही इस पर अपना नैसर्गिक अधिकार मानते हैं. इसराईल शुरू से ही इस पर दावा करता रहा है जबकि फिलिस्तीन इसे अपने देश की भविष्य की राजधानी मानता है.

1948 में इसराईल के स्वतंत्र राष्ट्र बनने से अभी तक किसी भी देश ने येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा नहीं दिया है. अपने कदम से मध्य एशिया में अमेरिका के समर्थक सऊदी अरब के शाह सलमान और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अलसीसी की चेतावनी को भी डोनाल्ड ट्रंप ने खारिज कर दिया है. इसराईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस कदम का दिल खोल कर स्वागत किया है जबकि फिलिस्तीन ने इसे मध्य एशिया में शांति प्रक्रिया खत्म होने का सूचक माना है. गाजा में ट्रंप और इसराईल के विरोध में उग्र हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं.

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