बिहार के सियासी हलकों में यह खुसुरफुसुर तेज होने लगी है कि सीबीआई के फंदे से छुटकारा पाने और नीतीश कुमार को दगाबाजी का सबक सिखाने के लिए लालू प्रसाद यादव भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाने के मूड में हैं.

इस कयास को कुछ ताकत इस बात से भी मिल रही है कि नीतीश कुमार भी भाजपा से अलग कोई गठबंधन बनाने की कोशिशों में लग गए हैं.

पिछले दिनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के 2 घटक दलों के मुखिया रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात कर उन्होंने इन अटकलों को बल दे दिया है. साथ ही, नीतीश कुमार ने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी को उन के दलबल के साथ अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है. वे इस कोशिश में लगे हैं कि अगर लालू और भाजपा के मिलने की अटकलें सच साबित हो जाएंगी तो वे किसी भी तरह से अपनी सरकार और साख बचाने में कामयाब हो जाएंगे.

अगर भाजपा और राजद की सीटों और वोट फीसदी पर गौर करें तो पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 53 सीटों के साथ 24.4 फीसदी वोट मिले थे वहीं राजद को 80 सीटें और 18.4 फीसदी वोट मिले थे. 80 सीटों के साथ राजद के सिर पर सब से बड़ी पार्टी होने का सेहरा बंधा था. इस हिसाब से भाजपा और राजद के मिलन से 133 सीटें हो जाती हैं.

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत पाने के लिए 123 सीटों की दरकार होती है. ऐसे में किसी और छोटेमोटे दल को शामिल किए बगैर आराम से सरकार चल सकती है.

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