देश के 10 राज्यों में लोकसभा की  4 और विधानसभा की 10 सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे केंद्र सरकार के कार्यों पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सरीखे हैं. 14 उपचुनावों से साफ संकेत मिल गया है कि अब देश में मोदी मैजिक खत्म हो रहा है. रामायण की तर्ज पर भाजपा के ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का घोड़ा कर्नाटक में विपक्ष ने रोक लिया. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अन्य राज्यों में हुए उपचुनावों में भी भाजपा को मात खानी पड़ी. जीत की जंग में भाजपा का प्रदर्शन सब से खराब रहा. भाजपा के लिए सब से बड़ी शर्मनाक हार ‘राम के प्रदेश’ उत्तर प्रदेश में रही.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एकतरफा मैदान मारने वाली भाजपा का उपचुनावों में हार का सिलसिला जारी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की लोकसभा सीटें क्रमश: गोरखपुर व फूलपुर हारने के बाद भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट भी हार गई. कैराना सीट का महत्त्व भी गोरखपुर और फूलपुर से कम नहीं है.

कैराना से हिंदुओं के पलायन का बनावटी मुद्दा बना कर भाजपा ने 2014 में लोकसभा सीट जीती थी. चुनावी जीत के बाद भाजपा कैराना से पलायन की बात को भूल गई, क्योंकि फिर साबित करना पड़ता कि कितने कहां क्यों गए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नूरपुर विधानसभा सीट सहारनपुर जिले में आती है और हिंदुओं के पलायन का मुद्दा वहां भी मददगार रहा पर अब उपचुनाव में नूरपुर सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई.

अविजित नहीं शाह-मोदी

उपचुनावों में भाजपा की हार से साफ हो गया है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी अविजित नहीं है. उस को हराया जा सकता है. राजनीतिक समीक्षक हनुमान सिंह ‘सुधाकर’ कहते हैं, ‘‘भाजपा की जीत का सफर विरोधी दलों के मनोबल को तोड़ चुका था. विपक्षी एक तरह से पस्त हो गए थे लेकिन कर्नाटक में भाजपा के प्रबंधन को तोड़ने के बाद विपक्षी एकता का मनोबल बढ़ गया है. अब उन को एहसास हो चुका है कि राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का प्रबंधन भी फेल हो सकता है.

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