दिल्ली विधानसभा की समितियां संविधान के नियमों का पालन करके गठित की गई हैं. इन्हें भंग नहीं किया जाएगा. उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने विधानसभा में यह जानकारी दी है.

उप मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल के संदेश को असंवैधानिक करार दिया. उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल का अभिभाषण भी सदन पटल पर रखने से पूर्व कैबिनेट की मंजूरी के लिए रखा जाता है. उन्होंने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि इनकी लोकतंत्र में आस्था नहीं है. जो संदेश सरकार को नियम 175 के तहत भेजा गया है. ऐसी शक्तियां राष्ट्रपति के पास भी संविधान की धारा 86(2) में है, लेकिन आज तक किसी भी राज्य सरकार को कभी उन्होंने ऐसा कोई पत्र नहीं भेजा है. ये अंग्रेजों के जमाने की सोच है और संविधान निर्माताओं ने ही संविधान से इसे हटा दिया है. यदि दिल्ली विधानसभा को सीधे पत्र भेजा जाता है तो यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट आदेशों का उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन उपराज्यपाल का पत्र

उपराज्यपाल या राज्यपाल किस स्थिति में सरकार को संदेश भेजेंगे, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में फैसला दिया था. उप मुख्यमंत्री ने बताया कि अरुणाचल के एक मामले में यह आदेश आया था. इसके तहत कोई भी मसौदा केवल कैबिनेट की अनुमति के बाद ही विधानसभा को भेजा जाएगा.

ये सदस्य होंगे

समिति के सदस्य संजीव झा, आदर्श शास्त्री, अमानतुल्ला खान, अलका लाम्बा, विशेष रवि, सही राम, सौरभ भारद्वाज, रितुराज गोविंद व जगदीश प्रधान होंगे.

‘दिल्ली सरकार किसी जवाबदेही से डरती नहीं’

सिसोदिया ने कहा कि इन समितियों की वजह से कामकाज की प्रक्रिया में तेजी आई है और काम होने शुरू हुए हैं. जरूरत होगी तो इन समितियों में दिल्ली सरकार के मंत्री भी जाएंगे. दिल्ली सरकार किसी भी जवाबदेही से डरती नहीं है. उप मुख्यमंत्री ने कहा कि इन समितियों के माध्यम से आम आदमी की आवाज सीधे बड़े अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की गई है. ये समितियां सदन से बनी हैं.

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