केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने हुए तकरीबन साढ़े 3 साल बीत चुके हैं. देश की जनता अच्छे दिन का इंतजार करतेकरते थक चुकी है, पर अच्छे दिनों ने तो आने का नाम ही नहीं लिया.

एक तरफ महंगाई व बेरोजगारी से बेहाल जनता ने अपने बुरे दिन वापस करने की ही मांग छेड़ दी है, वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी नेता अपनी लच्छेदार बातों के सपने दिखाते हुए साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट चुके हैं.

साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने देश की जनता को एक लोकप्रिय नारा दिया था. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के खिलाफ यह नारा था, ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार’.

सवाल यह है कि साढ़े 3 साल का सत्ता सुख भोगने के बाद भी सरकार आखिर अब तक महंगाई पर अंकुश क्यों नहीं लगा सकी है?

हद तो यह है कि इंटरनैशनल बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने के बावजूद भारत में पैट्रोल व डीजल सस्ता नहीं किया गया. रेलवे स्टेशन पर बिकने वाली प्लेटफार्म टिकट 2 रुपए से बढ़ा कर 10 रुपए कर दी गई थी, जबकि त्योहारों के नाम पर प्लेटफार्म पर होने वाली भीड़ को कम करने जैसी बात कहते हुए 31 अक्तूबर, 2017 को प्लेटफार्म टिकट की कीमत 20 रुपए कर दी गई.

सब्जियों व खानेपीने के दूसरे सामान सस्ते होने के बजाय और ज्यादा महंगे होने की अहम वजह डीजल व पैट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी ही है.

यही सत्तारूढ़ भाजपा साल 2014 से पहले टमाटर, प्याज, पैट्रोल, रसोई गैस वगैरह की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी के खिलाफ सड़कों पर उतर आया करती थी, जैसे जनता का इस से बड़ा कोई हमदर्द ही न हो.

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