एक साथ तीन तलाक पर कानूनी पाबंदी से इस बात की उम्मीद जग गई है कि औरतों के हक पर सरकार और अदालतें गंभीरता से विचार करेंगी. मुसलिम धर्म की ही तरह हिन्दू धर्म में भी बहुत सारे ऐसे मामले हैं जिनमें शादीशुदा जोडे अलग होना चाहते हैं. हिन्दू धर्म में शादी के बाद अलग होने की बेहद जटिल प्रक्रिया होती है. जिसमें सालों साल लोग पिसते रहते हैं. कई बार इस तरह की परेशानियों के चलते अरपराधिक घटनायें भी घटती हैं, जिनके मुकदमे दहेज उत्पीडन और दहेज हत्या जैसी हालातों तक पहुंच जाते हैं. हिन्दू धर्म में खाप पंचायतों और जातीय पंचायतों में शादी से अलग होने के अजीब ओ गरीब फैसले होते रहते हैं. जिस तरह से तीन तलाक को लेकर कानून और सरकार मुखर हुये, उस तरह से ही हिन्दू धर्म में शादी के बाद अलगाव यानि संबध बिच्छेद होने का सरल रास्ता बनाया जाये.

आज समाज में एकल पैरेंटस की संख्या बढ़ती जा रही है. इसकी मूल वजह यह है कि हिन्दू धर्म में शादी के बाद संबंध विच्छेद होना सरल नहीं है. संबंध विच्छेद की शुरुआत दहेज उत्पीड़न जैसे मुकदमों से शुरू होती है. एक पक्ष दूसरे पक्ष पर और दूसरा पक्ष पहले पक्ष पर अलगअगल तरह के आरोप लगाता है. थानों से लेकर कचहरी तक यह मुकदमे चलते हैं. इसके बाद दोनों पक्ष सहमति से अलगाव के लिये तैयार होते हैं. तब अलगाव के बाद यह मुकदमे समझौते के आधार पर खत्म होते हैं. कई बार लोगों में धैर्य नहीं रहता तो घटना गंभीर अपराध में बदल जाती है. हिन्दू धर्म में तलाक लेने के जो अधिकार दिये गये हैं उनमें से सबसे अधिक प्रचलित अधिकार एक दूसरे के चरित्र पर सवाल खड़े करना है. जल्द अलगाव के लिये सैक्सुली टार्चर करने के आरोप भी खूब लगते हैं.

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