जो हुआ उसकी उम्मीद और इंतजार हर किसी को था कि गुजरात विधानसभा चुनाव कैसे बगैर धार्मिक हाय हाय के सम्पन्न हुये जा रहे हैं. भाजपा गुजरात में किस बदहाली से जूझ रही है और गुजरात विकास मौडल की असलियत क्या है, यह राहुल गांधी के धर्म पर छाती पीटने से समझ भी आ रहा है कि यूं ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने ही गृह राज्य में जरूरत से ज्यादा केलोरी नहीं खर्च करनी पड़ रही है.

राहुल गांधी सोमनाथ के मंदिर क्या गए मानो शिव का तीसरा नेत्र  खुल गया, छोटे आकार की ही सही, एक प्रलय आ गई, क्योंकि सोमनाथ के एंट्री रजिस्टर में राहुल गांधी का धर्म गैर हिंदुओं वाले खाने में दर्ज किया गया था. साबित यह हुआ कि भगवान के दरबार में भी भेदभाव है, वहां भी धर्म और जाति बताना पड़ती है.

सोमनाथ मंदिर के बाहर लगे एक बोर्ड पर साफ साफ लिखा है कि यह एक हिन्दू मंदिर है और गैर हिन्दू इसमे अनुमति लेने के बाद ही प्रवेश कर सकते हैं. अव्वल तो इस निर्देश में ही विकट का विरोधाभास है क्योंकि मंदिर अपवाद स्वरूप जैन और बौद्ध धर्म को छोड़ दें तो हिन्दू धर्म के ही होते हैं और इतने होते हैं कि उनकी गिनती सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद राज्य सरकारें भी नहीं कर पा रहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह है कि अवैध रूप से बने नाजायज धर्मस्थलों जिनमे मंदिर भी शामिल हैं को हटाया जाये.

दूसरे निश्चित ही यह बोर्ड किसी भगवान ने नहीं बल्कि हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने लगाया होगा, जिनके मकसद कुछ और ही हमेशा से रहे हैं. राहुल गांधी के धर्म के विवाद से परे यह पूछा या सोचा जाये कि अगर हिंदुओं सा दिखने वाला कोई गैर हिन्दू एंट्री रजिस्टर में खुद का धर्म हिन्दू लिखाकर दर्शन कर आए तो क्या होगा. क्या शंकर मूर्ति उसे इस पाप के एवज में दंड स्वरूप भस्म करने की सामर्थ रखती है, यदि हां तो उसने महमूद गजनवी को क्यों भस्म नहीं किया था और अगर इस तरह फ्रौड करते कोई पकड़ा जाये तो कानून की किस धारा के तहत उसे किस सजा का प्रावधान है और अब तक कितनों को यह सजा दी गई है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...