1 अक्तूबर, 2018 के दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक अहम फैसला आया था जिस में मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने वह याचिका खारिज कर दी थी जिस में 1,400 करोड़ रुपए के स्मारक घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई थी. शशिकांत पांडेय की याचिका कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज की थी कि यह किसी निजी हित में दाखिल की गई है.

गौरतलब है कि बसपा प्रमुख मायावती के कार्यकाल में हुए इस भीमकाय घोटाले में शशिकांत का भाई संतोष पांडेय भी शामिल है.

मायावती इस घोटाले में भले ही आरोपी न हों लेकिन वे भी जांच के दायरे में आ सकती थीं, बशर्ते योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली भाजपा सरकार कोर्ट को यह भरोसा न दिलाती कि इस घोटाले की जांच सीबीआई या किसी दूसरी एजेंसी से कराने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि स्मारक घोटाले की विजिलैंस जांच तेजी से चल रही है और जल्द ही इसे पूरा भी कर लिया जाएगा.

गौरतलब यह भी है कि मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने लखनऊ और नोएडा में कई स्मारक और पार्क बनवाए थे जिन पर उन की सरकार ने तकरीबन 41 अरब, 48 करोड़ रुपए खर्च किए थे. तब मायावती सरकार पर घपलेघोटाले का आरोप लगा था. सरकार बदलने के बाद इस मामले की जांच तब के लोकायुक्त एनके मल्होत्रा को सौंपी गई थी.

लोकायुक्त ने 20 मई, 2013 को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हां, 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार रुपए का घोटाला हुआ है. इस रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी बनाया गया था और जांच की मांग सीबीआई या एसआईटी से कराने की सिफारिश की गई थी.

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