केंद्र सरकार ने दलित शब्द का इस्तेमाल न करने को कहा है. सरकार ने कहा है कि अनुसूचित जाति एक संवैधानिक शब्द है इसलिए यही शब्द इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए.

सरकार के इस फैसले पर देशभर के कई दलित संगठन और बुद्धिजीवी पुरजोर तरीके से खिलाफत कर रहे हैं और इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है.

इस निर्देश पर राजग सरकार के भीतर भी मतभेद है. केंद्र में मंत्री और रिपब्लिकन पार्टी औफ इंडिया के नेता रामदास अठावले इस से खुश नहीं हैं. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और भाजपा के दलित सांसद उदितराज ने भी दलित शब्द की पैरवी की है लेकिन केंद्रीय मंत्री राज्यवर्द्घन सिंह, प्रकाश जावड़ेकर जैसे नेता इस प्रतिबंध के पक्ष में हैं.

सरकार ने यह फैसला बांबे हाईकोर्ट के निर्देश पर दिया है. बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच ने सरकार को इस पर विचार करने के लिए कहा था. अदालत में पंकज मेश्राम नामक एक शख्स ने याचिका दायर की थी, जिस में कहा गया था कि दलित शब्द अपमानजनक है. इस का मतलब अछूत, असहाय और नीचा होता है. यह उस समुदाय के लिए अपमानजनक है. इस शब्द का संविधान में भी कहीं इस्तेमाल नहीं किया गया है.

इस से पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी मोहनलाल माहौर नाम के एक आदमी ने दलित शब्द को ले कर याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि दलित शब्द अपमानजनक है और इसे अनुसूचित जातियों को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

भाजपा सरकार अदालत की सलाह की आड़ में दलित शब्द को प्रतिबंधित करना चाहती है क्योंकि यह शब्द सरकार को ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिंदू संगठनों को गहरा चुभ रहा है. इन्हें जबतब टीस दे रहा है.

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