आत्मविश्वास से लबरेज किम जोंग उन अपनी योजना के साथ सिंगापुर आया, थोड़ा दिया और ज्यादा लेकर लौटा. अपना कद बढ़ाया, अमेरिकी राष्ट्रपति से तारीफें बटोरीं, सैन्य अभ्यास खत्म करने का वादा लिया. सबसे बड़ी बात उसका वह बढ़ा हुआ आत्मविश्वास कि उत्तर कोरिया ने सब कुछ बखूबी किया. निश्चित रूप से यह सब युद्ध से तो बेहतर ही है. हालांकि भय की पूरी दीवार जब ट्रंप की खड़ी की हुई हो तो उन्हें तो श्रेय नहीं दिया जा सकता.

अमेरिकी राष्ट्रपति अपने अहंकार की तुष्टि के लिए किम पर मेहरबान दिखे. उन्हें नहीं पता कि उन्होंने अपने देश का कितना नुकसान कर लिया. संयुक्त वक्तव्य की भाषा भी पिछले वक्तव्यों की तुलना में लचर दिखी. इसमें भविष्य के प्रति आश्वस्त करने वाली कोई प्रतिज्ञा नहीं दिखी. हां, ट्रंप को बैठक से इतना खुश देखना आश्चर्य नहीं, हंसी का मामला है.

ट्रंप उत्तर कोरिया वालों को समझाते दिखे कि कैसे वे तोपखाने के अभ्यास वाले समुद्र तटों पर ‘दुनिया के सबसे अच्छे होटल’ बना सकते हैं. वे किम को उसके बढ़ते वायस ओवर के साथ किसी हॉलीवुड फिल्म के ट्रेलर की तरह पेश करते नजर आए. उसे अपने देश से प्यार करने वाला एक ‘ऐसा प्रतिभाशाली इंसान’ बताया, जो अच्छे-अच्छे काम करना चाहता है. भूल गए कि वे ऐसे तानाशाह की बात कर रहे हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ आधुनिक विश्व में मानवाधिकार हनन का अपने तरह का अकेला पर्याय मानता है.

किम के बारे में वे बहुत मजबूती से कहते हैं कि ‘उन्हें मुझ पर और मुझे उन पर भरोसा है’. अब अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही इतने नासमझ हों, उत्तर कोरियाई नेता तो कतई ऐसा नहीं हो सकता, यह सब जानते हैं. ईरान समझौते से इकतरफा मुकरने के बाद कहा जाने लगा है कि अमेरिका की बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता. जी 7 व सिंगापुर बैठकों ने भी बताया है कि घटक हमेशा साथ नहीं रह सकते.

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