भारतीय जनता पार्टी ने देश पर एकछत्र राज तो स्थापित कर लिया है पर वह अभी भी युवाओं के मन में वह उत्साह पैदा नहीं कर पाई है जो आमतौर पर चुनाव पर चुनाव जीतने वाले नरेंद्र मोदी जैसे सफल नेता पैदा कर देते हैं. देश की युवा पीढ़ी हर रोज नए खतरों की आहट सुन रही है. जब दुनिया तकनीक व नए कुशल प्रबंधन के आयाम देख रही है, हमारी सुर्खियों में पेरियार व अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने, लवजिहाद के नाम पर हमले, पद्मावत जैसी फिल्मों पर विवाद, नीरव मोदी जैसे बेईमानों, गौरक्षा के नाम पर हत्याओं, मंदिर की जिद आदि की कानफोड़ू आवाजें सुनाई देती हैं.

कल आज से बेहतर होगा ऐसा लगता ही नहीं है क्योंकि दुनिया की नई तकनीक पर हमारा भरोसा केवल इतना है कि हम उसे खरीद सकते हैं, बना नहीं सकते. विदेशी बाहर से आ कर कारखाने लगा लें, अपने मैनेजर ले आएं और मुगलों व अंगरेजों की तरह हमारे युवाओं को नौकर रख कर काम करा लें. इतना भर दिख रहा है.

भारतीय जनता पार्टी की लगातार चुनावी जीतों से साफ है कि देश के एक बड़े वर्ग की रुचि पिछले कल में है, अगले कल में नहीं. लोग पाखंड और झूठ के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें सच साबित करने के लिए न केवल झूठ का सहारा लेना पड़ रहा है, बल्कि वे झूठ पर आधारित सरकारों का अंधा समर्थन भी कर रहे हैं. अगर आज का युवा परीक्षाओं में नकल पर ज्यादा जोर दे रहा है तो इसलिए कि उसे मालूम है कि इस झूठ के बल पर मिली नौकरी में वह मजे में पूरी जिंदगी निकाल देगा. इस तरह वह झूठ पर झूठ बोल सकता है और निकम्मा रह कर भी कमाऊ बन सकता है. देश के खून में तो सदियों से झूठ के विषाणु रहे हैं पर आज जब उस का इलाज संभव है तब भी कोई, कहीं दवा की चिंता नहीं कर रहा है.

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