कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की किरकिरी हुई. हालांकि वह चुनाव में हारी नहीं है, बल्कि सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. पर इतनी बात साफ है कि यदि अपनी गायों के लिए भाजपा के पास चारा कम होगा तो वह अब दूसरों से झटकने की कोशिश सोचसमझ कर ही करेगी ताकि फिर से किरकिरी न होने पाए. सरकार बनाने में उस के गच्चा खा जाने के बाद अब जो पलायन दूसरी पार्टियों से भाजपा की ओर हो रहा था, वह बंद हो जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के गौरक्षक गायों के लिए दूसरों को मारनेपीटने को तो हर समय तैयार रहते हैं पर गायों के लिए चारा उगाने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की. मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, ईज औफ डूइंग बिजनैस उसी तरह के मंत्र हैं जैसे आयुष्मान भव:, सौभाग्यवती भव:, अतिथि देवो भव: जो बोले तो जाते हैं लेकिन उन के लिए किया कुछ नहीं जाता.

अब वोटरों को भी दिखने लगा है और नेताओं को भी कि भाजपा हर हालत में सत्ता में रहेगी, ऐसी गारंटी नहीं है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल के उपचुनावों में हार, गुजरात में ढीले प्रदर्शन और कर्नाटक में बहुमत न पा सकने से भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा हिंदू समाज के उन स्वयंभू ठेकेदारों के तेवर ढीले हुए हैं जो सोच रहे थे कि रामराज्य आ ही गया है जिस में पिछड़े हनुमान दास को पूजते रहेंगे व शंबूकों को पढ़ने से मना किया जाता रहेगा और ब्राह्मण श्रेष्ठों की ही चलेगी चाहे उस के लिए पत्नी सीता को फिर वनवास देना पड़े.

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