चीन अब पैतरे दिखाने पर उतारू नजर आ रहा है. उस को चकाचौंध कर देने वाली अमीरी का गुमान ज्यादा हो गया है. चीन में अपना राज मजबूत बनाए रखने के लिए वहां की कम्यूनिस्ट पार्टी अब ऐसे शत्रु को ढूंढ़ रही है, जिसे कालिख से पोत कर वह अपनी जनता को भटकाव में रख सके.

पहले चीन ने रूस को दुश्मन करार दिया था, अब रूस से दोस्ती हो गई है, क्योंकि रूस के रास्ते वह यूरोप के बाजारों तक पहुंचना चाहता है. पाकिस्तान से उस की दोस्ती पुरानी है. तब से जब पाकिस्तान पूरी तरह अमेरिका के पलड़े में था. वह भारत को तो 1950 से दुश्मन मान रहा है, जब भारत ने दलाई लामा की हिमायत की और 1958 में उन्हें भारत में शरण दी. तब भारत को सबक सिखाने के लिए चीन ने 1962 में उत्तरी सीमा पर हिमालय पार कर सैनिक भेज कर जवाहर लाल नेहरू की सरकार की चूलें हिला दीं.

अब भारत ने चीन की वन रोड वन बैल्ट योजना में भाग लेने से इनकार कर दिया है और रूस व जापान के साथ मिल कर चीन का मुकाबला करने का फैसला किया है, तो सिक्किम व भूटान के पठारी इलाकों, जिन्हें डोकलाम के नाम से जाना जा रहा है, पर चीन हक जमा रहा है. चीन का आरोप है कि भारतीय सैनिक टुकड़ी ने चीनी इलाके में घुसपैठ की है.

चीन अब तिब्बत की तरफ से लड़ाई की तैयारी में लगा है. भारत की फौजें भी इस इलाके में हैं. चीन के लिए इस मामले में लड़ाई करना काफी फायदे में हो सकता है. उसे सीमा से सटे अपने दूसरे देशों को जताना है कि चीन आर्थिक मोरचे पर ही नहीं, बल्कि सैनिक मोरचे पर भी अब दुनिया का सब से बड़ा देश बनने वाला है. अगर उस की बात नहीं मानी गई, तो वह जबरन मनवा सकता है.

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