मुंबई के एलफिंस्टन रोड स्टेशन पर मची भगदड़ में जिन 24-25 लोगों की मौतें हुई हैं उन पर सरकार घडि़याली आंसू चाहे बहा ले पर सरकार का रवैया बदलेगा, यह न सोचना. उपहार सिनेमा दिल्ली या इमामी अस्पताल कोलकाता में आग से हुई मौतों के लिए मालिकों को जेल भेजा गया था पर चिंता न करें, उत्तर प्रदेश के अस्पताल में बच्चों की मौतें हों, रेलों की दुर्घटनाओं में लोग मरें या भगदड़ में मौतें हों, हमारे नेता ही नहीं, अफसर और बाबू से ले कर निचले स्तर तक के कर्मचारी भी सुरक्षित हैं.

मुंबई के इस स्टेशन पर ही नहीं, हर स्टेशन पर अचानक कब भारी भीड़ जमा हो जाए और भगदड़ की नौबत आ जाए, कहा नहीं जा सकता. मुंबई की रक्त नलिकाएं लोकल व बाहरी ट्रेनें लाखों यात्रियों को इधर से उधर ले जाती हैं ताकि वे इस गंदे, बदबूदार, विशाल और पैसों से भरे शहर में रोजी कमा सकें.

रेलों को लोकल ट्रेनों से नुकसान होता है और इसलिए यात्रियों की सुविधाओं की ओर सुरक्षा की देखभाल कम ही की जाती है. रेल कर्मचारियों के लिए हर यात्री एक आफत है और उस से सहानुभूति किसी को नहीं है. वह रेलों का याचक है, ग्राहक नहीं.

जिसे सरकार दान में कुछ दे रही है वह भीड़ में कुचल जाए तो सरकार का क्या जाता है, यह मानसिकता रेल अधिकारियों के मन में कूटकूट कर भरी है. बुलेट ट्रेन की कल्पना कर 5,000 रुपए के टिकट बेचने वाले मंत्री प्रधानमंत्री 12 रुपए के टिकट खरीदने वाले की चिंता क्यों करने लगें.

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