कैरियर की शुरुआत में अभिनेत्रियों को ही नहीं, दूसरे बहुत से क्षेत्रों में भी स्मार्ट, सुंदर युवतियों को अपना शरीर सौंपना पड़ता है ताकि उन की राह में पुरुष रोक न लगाएं. हौलीवुड के प्रसिद्ध, अतिसफल निर्देशकनिर्माता हार्वे विंसटीन का भंडाफोड़ पिछले अक्तूबर में एक अभिनेत्री मीरा सैरविनो ने किया था और उस के बाद लगभग 80 युवतियां कह चुकी हैं ‘मी टू’ यानी मैं भी शिकार रही हूं.

गोल्डन ग्लोब अवार्ड कार्यक्रम के दौरान बहुत सारी अभिनेत्रियां, नायिकाएं व फिल्मों व टीवी से जुड़ी अन्य हस्तियों ने यौनशोषण के खिलाफ विरोध करने के लिए काली पोशाकें पहनी थीं.

सफलता के लिए आदमी को लैंगिक मर्दानगी साबित करने की आवश्यकता नहीं होती तो औरतों को क्यों करनी पड़े, यह सवाल स्वाभाविक है. मर्दों को सैकड़ों औरतों के साथ संबंध बनाने की छूट है पर घर से निकली औरत को पहले ही कदम पर यौनअर्पण के लिए मजबूर कर दिया जाता है.

बहुत से क्षेत्रों में, केवल शो बिजनैस में ही नहीं, औरतों को सफलता पाने के लिए अपने को सभी मर्दों की साझी संपत्ति घोषित करना होता है और यह साजिश है कि पत्नी कुंआरी ही हो, ताकि सफल औरतें पत्नी ही न बनें.

औरतों को उन से यौन संबंध बनाने होते हैं जिन से प्यार ही नहीं होता. नतीजा यह होता है कि इन औरतों की प्रेमग्रंथि को पहले ही मसल दिया जाता है. सैकड़ों युवतियों को कुरबानी देनी होती है. ओपरा विनफ्रे जैसा नाम थोड़ी सी महिलाओं को ही को मिलता है.

क्या गोल्डन ग्लोब अवार्ड फंक्शन में इस का खुला विरोध कुछ बदलाव लाएगा? शायद नहीं. 150-200 वर्षों की तार्किक सोच, शिक्षा, औरतों के नए अवसरों के बावजूद अभी तक समाज पुरुष सत्तात्मक ही बना हुआ है और जिस देश में धर्म जितना हावी है वहां उतना ज्यादा अत्याचार होता है. औरतें जीवनभर गाय की तरह गुलाम बनी रहती हैं, दूध देती हैं, बछड़े पैदा करती हैं और खूंटे पर बंधीबंधी मर जाती हैं.

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