देश के शहरों में ऊंचे मकानों के बारे में सरकार अब एक सकल योजना पर विचार कर रही है. सरकार का विचार है कि बजाय शहरों को चारों ओर फैलाने के, उन्हें ऊंचा करना ठीक होगा ताकि कम जमीन पर ज्यादा लोगों को बसाया जा सके. आजकल ज्यादातर शहरों में एक या दोमंजिले मकान ही हैं और हाल ही में 4 मंजिलों की इजाजत दी गई है.

यूरोप के देशों में सदियों से 4-5 मंजिले मकान बनाने का रिवाज रहा है और वहां ही लिफ्ट ईजाद की गई थी. लकड़ी के बहुमंजिले मकान चीन व जापान में बहुत बनते थे पर हमें, वास्तु का पंडिताई ज्ञान चाहे हो, वास्तुकला का व्यावहारिक ज्ञान नहीं था और ऊंचे मकान बनाना खतरे से खाली न था.

देश की अव्यवस्था का आलम यह है कि मकान की जमीन मालिक की है पर पुलिस, कौर्पोरेशन, बैंक और अब पर्यावरण सुरक्षा, पुरातत्त्व सुरक्षा वाले भी उस पर जमने लगे हैं. नतीजा यह है कि मकान गांवों में बनते हैं जहां वे बेतरतीब होते हैं और कुछ सालों में स्लम सा बन जाते हैं और जहां सड़कें न के बराबर होने की वजह से जाने के लिए घंटों लगते हैं.

ऊंचे मकान हों तो लोग 5-6 मंजिल उतर कर पैदल ही दफ्तरों तक पहुंच सकते हैं. पटरी बनाने की लागत सड़क, बस, ट्रेन और मैट्रो बनाने की अपेक्षा बहुत कम होती है. नागरिकों को साफ हवापानी मिले, इस के लिए बनाए गए ज्यादातर नियम गले की हड्डियां बने हुए हैं. नागरिकों को अपने फैसले खुद लेने ही नहीं दिए जा रहे.

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