जनता के सेवकों को इतना डर क्यों लगता है कि वे काली डरावनी ड्रैसों वाले ब्लैककैट कमांडों और बंदूकधारियों से घिरा रहना चाहते हैं. लालू प्रसाद यादव की सिक्योरिटी को जैड प्लस कैटीगरी से घटा कर जैड कैटीगरी कर दिया तो नाराज होने की क्या बात है. इस का मतलब तो यही है न कि लालू प्रसाद यादव की जान के दुश्मन कम हो गए हैं.

सिक्योरिटी कम करने पर लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव का भड़क कर खाल खींचने के बोल बोलना तो खिसियानापन दर्शाता है जो लालू जैसे कद्दावर नेता के लिए धब्बा है. लालू प्रसाद यादव पर ऊंची जातियों ने एक हो कर चौतरफा हमले करे हैं और लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में रुकवाने की हिम्मत दिखाने की सजा उन्हें लगातार दी जा रही है.

लालू प्रसाद यादव जेल में नहीं टूटे, सत्ता खो कर नहीं टूटे, रेल मंत्रालय खो कर नहीं टूटे, तो 10-20 सुरक्षा जवानों की कमी से कैसे टूट सकते हैं. लालू यादव ने बिहार के पिछड़ों को बदलने की कोशिश की है और हो सकता है कि आज की पीढ़ी को क्या उन के खासमखासों को अहसास न हो कि लालू यादव पिछड़ों को गड्ढे से खींचने के लिए मजाकमजाक में न जाने क्या कर गए हैं. उन के दुश्मन कम नहीं होने चाहिए क्योंकि उन से पहले बिहार पर ब्राह्मणों, राजपूतों और महाजनों का एकछत्र राज था जो बिहार को परंपराओं के जाल में फंसा कर देश का सब से गरीब राज्य बनाए रख रहे थे. लालू यादव ने बहुत सी जंजीरें तोड़ी हैं तो जिन के हाथों में जंजीरें थीं वे खिसिया सकते हैं पर पहरेदारों के बीच घिरा रहना कोई तमगा नहीं है क्योंकि कभी भी कोई जानलेवा हमले करे तो जैड प्लस सिक्योरिटी भी कुछ नहीं कर सकती.

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