शहरों की बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मैट्रो रेल सेवाओं का बड़ा जाल बिछाया जा रहा है. यह  ठीक है पर ट्रैफिक की समस्या को यह न तो निजात देगा न हरेक वर्ग के लिए, हर समय के लिए उपयुक्त है. अपना वाहन सदियों से मानव का सही सहारा रहा है और अपना घोड़ा, गधा या रथ अथवा घोड़ागाड़ी सदियों से सफल संपन्न लोगों की ताकत रहे हैं.

इस तरह के लोग अगर मैट्रो, बस, टैक्सी न लें तो इस के लिए उन्हें दोष देना गलत है. उन्हें उन की चाही सुविधा दें चाहे, उस की कीमत लें.

मैट्रो के साथसाथ बहुमंजिली सड़कें बनाना भी अब जरूरी हो गया है. जैसेजैसे शहर ऊंचे हो रहे हैं यानी 20-30-50 मंजिले मकान बन रहे हैं, वैसे ही बहुमंजिली सड़कें 4-5-6 मंजिली बननी चाहिए. बहुत जगह बन रही हैं और 2-3 लैवल अब आम होने लगे हैं. अब सरकारों को 4-5 मंजिली लंबी सड़कों के बनाने पर विचार करना होगा.

जैसी बहुमंजिली पार्किंग बन रही हैं और ये शहरों के लिए विलासिता नहीं, आवश्यकता हो गई हैं, वैसी ही बहुमंजिली सड़कें भी बनानी होंगी.

ज्यादा गाडि़यां ज्यादा प्रदूषण जरूर फैला सकती हैं पर यदि ट्रैफिक के लिए रुकना न पड़े तो कम धुआं बरबाद कर के भी लंबी यात्रा की जा सकती है. ये सड़कें टोल सड़कें यानी जब इस्तेमाल करो तब पैसा दो के आधार पर भी बनाई जा सकती हैं और कर लगा कर पैसा वसूल करने के आधार पर भी.

मैट्रो पर भरोसा ठीक है पर कारें आज के आधुनिक समाज के लिए आवश्यक हैं. उन से बचा नहीं जा सकता.

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