“हैलो, कैन आई टौक टू रवनीत मैम?’’ मोबाइल फोन पर किसी पुरुष की रौबदार आवाज उभरी. ‘‘यस, आफकोर्स.’’ दूसरी ओर से किसी युवती ने खनकती आवाज में पूछा.

‘‘मैम, मैं जयपुर से आया हूं, मेरा नाम करण है... करण शर्मा...’’ उसी रौबदार आवाज में पुरुष ने कहा, ‘‘दरअसल, मैं जयपुर में एक मीडिया हाउस में काम करता हूं. मेरे दोस्त ने रवनीत मैम का नंबर दिया था, इसीलिए फोन किया है.’’

‘‘यस, आई एम रवनीत स्पीकिंग.’’ उसी खनकती आवाज में युवती ने कहा.

‘‘मैम, मैं आप के कोचिंग सैंटर में अपने बेटे का एडमिशन कराना चाहता हूं, इसलिए आप से मिलना चाहता हूं.’’ करण ने फोन करने का मकसद बताया.

‘‘यस, आप कोटा आएं तो सीधे कोचिंग सैंटर आ जाएं, मुलाकात हो जाएगी.’’ युवती ने कहा.

‘‘मैम, मैं आज जयपुर से इसी काम के लिए कोटा आया हूं, आप कहें तो मैं आ जाऊं?’’ करण ने गुजारिश करने वाले अंदाज में कहा.

‘‘ठीक है, अभी एक बजा है, आप ऐसा कीजिए, 2 बजे तक आ जाइए. इतनी देर में मैं लंच कर लेती हूं.’’ रवनीत ने कहा.

‘‘ओके मैम.’’ करण ने कहा.

यह 4 जनवरी, 2017 की बात है. रवनीत कोटा के एक नामी कोचिंग इंस्टीट्यूट में पब्लिक रिलेशन (पीआर) का काम करती थी. इस इंस्टीट्यूट में आईआईटी-जेईई आदि परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती थी.

इस कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते उसे अभी कुछ ही महीने हुए थे, लेकिन अपनी खूबसूरती और अच्छी अंगरेजी में लच्छेदार बातें करने की वजह से वह इतने कम समय में ही कोचिंग संस्थान के कामकाज से अच्छी तरह वाकिफ ही नहीं हो गई थी, बल्कि पब्लिक रिलेशन की जिम्मेदारी संभालने की वजह से कोचिंग इंस्टीट्यूट में अपने बच्चों का एडमिशन दिलाने के लिए तमाम प्रभावशाली लोग उस की मदद ले रहे थे. क्योंकि कोचिंग इस्टीट्यूट की मोटी फीस में वह कुछ रियायत भी करवा देती थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...