12 अप्रैल की बात है. एक अधेड़ आदमी जयपुर के गांधीनगर पुलिस थाने पहुंचा. उस ने थाने के गेट पर खड़े संतरी से कहा, ‘‘भैया, मुझे रिपोर्ट दर्ज करानी है.’’

संतरी ने अधेड़ को अंदर ड्यूटी अफसर से मिलने को कहा. अंदर एक सबइंसपेक्टर ड्यूटी अफसर की कुरसी पर बैठा था. आसपास पुलिस के 2 जवान बैठे कुछ लिखापढ़ी कर रहे थे. ड्यूटी अफसर के सामने रखी कुर्सियों पर 2 लोग पहले से बैठे थे, जिन से ड्यूटी अफसर बात कर रहा था.

ड्यूटी अफसर को बातों में व्यस्त देख कर अधेड़ कुछ देर खड़ा रहा. फिर बेचैनी से इधरउधर देखने लगा. अधेड़ की बेचैनी देख कर सबइंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘बताएं साहब, क्या बात है?’’

‘‘थानेदार साहब, मेरे बेटे की बहू नहीं मिल रही है. आप उसे ढूंढ देंगे तो भला होगा.’’ अधेड़ ने अपने आने का मकसद बता दिया.

‘‘आप की बहू कब से गायब है?’’ ड्यूटी औफिसर ने पूछा.

‘‘साहब, वह एक दिन पहले से गायब है.’’ अधेड़ ने अपने कंधे पर पड़े अंगौछे से माथे पर आया पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘आप की बहू आप के बेटे के पास ही रहती होगी, फिर वह गायब कैसे हो गई?’’ ड्यूटी अफसर ने अधेड़ के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपनी मरजी से किसी के साथ चली गई हो?’’

‘‘नहीं थानेदार साहब, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ अधेड़ ने ड्यूटी अफसर को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मेरा बेटा आयकर विभाग में इंसपेक्टर है. उस की पोस्टिंग गुजरात के वड़ोदरा में है. मेरी बहू यहीं जयपुर के बापूनगर में एक पीजी हौस्टल में रह कर टीचर भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही थी.’’

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