‘साहब, मैं कभी पाकिस्तान तो क्या, प्रदेश के किसी दूसरे जिले में भी नहीं गया. जैसेतैसे कर के मैं अपने परिवार की गाड़ी खींच रहा हूं.’’ हाथ बांधे सुलेमान बाड़मेर के तत्कालीन एसडीएम की अदालत में गिड़गिड़ा रहा था. यह सन 1975 के शुरुआती दिनों की बात है.

‘‘सुलेमान, तुम्हारे इलाके के पटवारी ने रिपोर्ट दी है कि तुम कुछ दिनों पहले अनाधिकृत रूप से पाकिस्तान भाग गए थे. इसलिए तुम्हारी पुश्तैनी कृषि भूमि को राजस्थान टीनेंसी एक्ट के तहत जब्त किए जाने की काररवाई विचाराधीन है.’’ उपखंड अधिकारी ने कहा.

सुलेमान फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, पाकिस्तान भाग जाने का आरोप झूठा है. हां, उन दिनों मैं रोजीरोटी के लिए परिवार के साथ कहीं दूसरी जगह जरूर चला गया था. पटवारीजी ने मेरे बारे में झूठी रिपोर्ट दी है. गरीब होने के कारण मैं उन की सेवा नहीं कर सकता. इसीलिए उन्होंने नाराज हो कर झूठ लिख दिया है.’’

एसडीएम सुलेमान की फाइल फिर से पलटने लगे. तहसीलदार के निर्णय के खिलाफ सुलेमान ने एसडीएम की अदालत में अपील की थी. आखिरकार एसडीएम ने सुलेमान की गैरहाजिरी में उस की 24 बीघा कृषि भूमि को जब्त कर सरकारी घोषित कर दिया था. तारीख पेशी की जानकारी नहीं होने के कारण सुलेमान उस दिन अदालत में नहीं था.

सुलेमान को जब यह जानकारी मिली तो उसे बड़ा धक्का लगा. उस ने अपनी व्यथा अपने पड़ोसी चौथमल को बताई. चौथमल उस के साथ हुई नाइंसाफी से द्रवित हो उठा. उस ने सुलेमान को राजस्थान हाईकोर्ट जाने की सलाह दी. इतना ही नहीं, वह सुलेमान के साथ जोधपुर स्थित हाईकोर्ट गया और एसडीएम के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अपील दायर कर दी. वहां भी कई सालों तक केस चला.

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