20 फरवरी, 1956 को भोपाल, मध्य प्रदेश के एक साधारण परिवार में जनमे अन्नू कपूर ने देखते ही देखते फिल्म इंडस्ट्री में 34 साल गुजार दिए हैं. ‘एक रुका हुआ फैसला’ ने उन की फिल्मी जिंदगी को पहले सपनों की ‘मंडी’ में खड़ा किया, फिर ऐसी रफ्तार दी कि साल 2012 में आई फिल्म ‘विकी डोनर’ में उन के डाक्टर बलदेव चड्ढा के किरदार ने अवार्डों से उन की झोली भर दी.

हाल ही में अन्नू कपूर अपनी नई फिल्म ‘मुआवजा: जमीन का पैसा’ के प्रमोशन के लिए दिल्ली आए थे, जहां उन्होंने एक खास बातचीत में अपनी फिल्मी जिंदगी की बहुत सी अनकही बातों को साझा किया.

पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:

आप तो पढ़लिख कर आईएएस बनना चाहते थे, फिर आप फिल्म इंडस्ट्री में कैसे आए? आप को फिल्म ‘मंडी’ कैसे मिली?

हम दिल्ली से नाटक ‘एक रुका हुआ फैसला’ करने के लिए मुंबई गए थे, जिस का डायरैक्शन मेरे बड़े भाई रंजीत कपूर ने किया था. वहां पर फिल्म इंडस्ट्री के बहुत सारे लोगों ने वह नाटक देखा था. शायद शबाना आजमी और इफ्टा के सौजन्य से वह नाटक पेश किया गया था, मेरे पास पूरी डिटेल्स नहीं हैं. उस नाटक को देखने के लिए श्याम बेनेगल को भी न्योता दिया गया था. फिर मैं वापस दिल्ली आ गया था.

एक दिन पंकज कपूर ने मुझ से कहा कि श्याम बेनेगल एक फिल्म बना रहे हैं ‘मंडी’ और वहां पर तुम्हारे बारे में एक छोटे से रोल के लिए जिक्र आया है. ऐसा नहीं है कि चर्चा की गई है, क्योंकि हम कोई बड़े आदमी तो हैं नहीं कि श्याम बेनेगल हमारी चर्चा करें.

पंकज कपूर ने बताया कि ऐसे ही तुम्हारा नाम किसी ने बताया है, तो बहुत अच्छा होगा कि तुम उन को एक चिट्ठी लिखो. मैं ने उन को एक चिट्ठी लिख दी.

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