कठुआ बलात्कार कांड के बाद लोगों का ध्यान कश्मीर की घुमंतु जनजाति बकरवाल की तरफ गया. मगर इस जनजाति पर फिल्मकार पवन कुमार शर्मा ने एक फिल्म ‘ ‘करीम मोहम्मद’’ का निर्माण किया है, जो कि कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहो में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद 24 अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है. पवन कुमार शर्मा की फिल्म ‘‘करीम मोहम्मद’’ का कठुआ कांड से कोई संबंध नही है, मगर उनकी फिल्म बकरवाल जनजाति के लोगों के जीवन पर रोशनी डालने के साथ ही इस बात को चित्रित करती है कि किस तरह इस समुदाय के लोग उंची पहाड़ियों पर आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखते हुए भारतीय फौज की मदद करता है. यानी कि बकरवाल एक देशभक्त जनजाति है.

प्रस्तुत है पवन कुमार शर्मा से हुई लंबी बातचीत के अंश...

आपकी पृष्ठभूमि क्या है?

मैं हिमाचल में मंडी से हूं. पहाड़ों पर ही पला बढ़ा हूं. 20-22 साल तक वहां के लोगों ने ट्रेन नहीं देखी थी. पर वहां थिएटर हैं. थिएटर ही हमें यहां तक लेकर आया. 1985 में एनएसडी की तरफ से मंडी में एक एक्टिंग वर्कशाप आयोजित हुआ था, जिसमें मैं व रोहिताश्व गौड़ सहित कई लोग जुड़े थे. वहीं से हम सभी ने अपने अपने रास्ते चुने. जब मैंने वहां से दिल्ली आने का निर्णय लिया, तो मेरी मां ने बहुत रोना धोना मचाया. हमें कोई भी चीज आसानी से नहीं मिली है. हमारे अंदर काफी जुझारू पन है. हमने काफी लड़ाई लड़ी. लड़ते लड़ते या यूं कहे कि संघर्ष करते करते यहां तक पहुंचे हैं. अभी भी हम समझौता वादी काम नहीं कर रहे हैं. लड़ाई जारी है. मेरे लिए फिल्म निर्माण पूजा है. मेरी नयी फिल्म ‘करीम मोहम्मद’ एक हवन है, जिसमें सभी कलाकारों व तकनीशियनों ने अपनी अपनी आहुती दी है.

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