कहने को भोजपुरी सिनेमा ने 50 साल से ज्यादा का सफर पूरा कर लिया है, लेकिन उस के खाते में 50 बेहतरीन फिल्में भी नहीं हैं. हर साल 50 से ज्यादा भोजपुरी फिल्में बन रही हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों की अंधी नकल की वजह से वे न घर की रहीं और न घाट की.

भारत समेत मौरीशस, फिजी, सूरीनाम वगैरह देशों में तकरीबन 25 करोड़ लोग भोजपुरी बोलने समझने वाले हैं. देश में बिहार और उत्तर प्रदेश में भोजपुरी बोलने वाले सब से ज्यादा हैं. महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात वगैरह राज्य भी भोजपुरी सिनेमा के बड़े बाजार हैं, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों लाखों लोग वहां के कल कारखानों में काम करते हैं.

भोजपुरी सिनेमा के हीरो राजीव मिश्रा कहते हैं कि परदेश में अपनी बोली की फिल्म देख कर लोग अपने गांव की मिट्टी की खुशबू के जैसा मजा लेते हैं. इसी वजह से दूसरे राज्यों में भी भोजपुरी फिल्में काफी चलती हैं. वहीं मिट्टी की खुशबू आज की भोजपुरी फिल्मों से पूरी तरह से गायब हो चुकी है और उस की जगह पूरी तरह से मुंबइया फिल्मों के स्टाइल ने ले ली है.

‘गंगा मइया तोहरे पियरी चढ़इबो’ पहली भोजपुरी फिल्म थी, जो 5 फरवरी, 1962 में रिलीज हुई थी. 5 लाख रुपए में बनी उस फिल्म ने 75 लाख रुपए की कमाई की थी.

विश्वनाथ शाहाबादी की बनाई इस फिल्म को मिली भारी कामयाबी के बाद तो भोजपुरी सिनेमा का रास्ता ही खुल गया और एक के बाद एक धड़ाधड़ भोजपुरी फिल्में बनने लगीं.

साल 1977 में भोजपुरी सिनेमा तब एक बार फिर उठ खड़ा हुआ, जब हिंदी सिनेमा के खलनायक रहे सुजीत कुमार और छोटेमोटे रोल करने वाली प्रेम नारायण भोजपुरी फिल्म ‘दंगल’ में हीरो हीरोइन बन कर आए.

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